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दक्षिण का चोल राजवंश ( The Chola Empire of the South)

 

दक्षिण का चोल राजवंश -

यह भारतीय महाद्वीप के एक बड़े हिस्‍से को शामिल करते हुए नौवीं शताब्‍दी ए.डी. के मध्‍य में उभरा साथ ही यह श्रीलंका तथा मालदीव में भी फैला था।

इस राजवंश से उभरने वाला प्रथम महत्‍वपूर्ण शासक राजराजा चोल 1 और उनके पुत्र तथा उत्तरवर्ती राजेन्‍द्र चोल थे। राजराजा ने अपने पिता की जोड़ने की नीति को आगे बढ़ाया। उसने बंगाल, ओडिशा और मध्‍य प्रदेश के दूरदराज के इलाकों पर सशस्‍त्र चढ़ाई की।

राजेन्‍द्र I, राजाधिराज और राजेन्‍द्र II के उत्तरवर्ती निडर शासक थे जो चालुक्‍य राजाओं से आगे चलकर वीरतापूर्वक लड़े किन्‍तु चोल राजवंश के पतन को रोक नहीं पाए। आगे चलकर चोल राजा कमजोर और अक्षम शासक सिद्ध हुए। इस प्रकार चोल साम्राज्‍य आगे लगभग डेढ़ शताब्‍दी तक आगे चला और अंतत: चौदहवीं शताब्‍दी ए.डी. की शुरूआत में मलिक कफूर के आक्रमण पर समाप्‍त हो गया।

The Chola Empire of the South -

It emerged in the middle of the 9th century A.D., covered a large part of Indian peninsula, as well as parts of Sri Lanka and the Maldives Islands.

The first important ruler to emerge from the dynasty was Rajaraja Chola I and his son and successor Rajendra Chola. Rajaraja carried forward the annexation policy of his father. He led armed expedition to distant lands of Bengal, Odisha and Madhya Pradesh.

The successors of Rajendra I, Rajadhiraj and Rajendra II were brave rulers who fought fiercely against the later Chalukya kings, but could not check the decline of Chola Empire. The later Chola kings were weak and incompetent rulers. The Chola Empire thus lingered on for another century and a half, and finally came to an end with the invasion of Malik Kafur in the early 14th century A.D.


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