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भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस (आई एन सी) का गठन (Formation of Indian National Congress (INC)


 भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस (आई एन सी) का गठन -

भारतीय राष्‍ट्रीय आंदोलन की नींव, सुरेन्‍द्र नाथ बनर्जी द्वारा 1876 में कलकत्‍ता में भारत एसोसिएशन के गठन के साथ रखी गई। एसोसिएशन का उद्देश्‍य शिक्षित मध्‍यम वर्ग का प्रतिनिधित्‍व करना, भारतीय समाज को संगठित कार्यवाही के लिए प्रेरित करना था। एक प्रकार से भारतीय एसोसिएशन, भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस, जिसकी स्‍थापना सेवा निवृत्‍त ब्रिटिश अधिकारी ए.ओ.ह्यूम की सहायता की गई थी, की पूर्वगामी थी। 1895 में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस (आई एन सी) के जन्‍म से नव शिक्षित मध्‍यम वर्ग के राजनीति में आने के लक्ष्‍ण दिखाई देने लगे तथा इससे भारतीय राजनीति का स्‍वरूप ही बदल गया। भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन दिसम्‍बर 1885 में बम्‍बई में वोमेश चन्‍द्र बनर्जी की अध्‍यक्षता में हुआ तथा इसमें अन्‍यों के साथ-साथ भाग लिया।

सदी के बदलने के समय, बाल गंगाधर तिलक और अरविंद घोष जैसे नेताओं द्वारा चलाए गए "स्‍वदेशी आंदोलन" के मार्फत् स्‍वतंत्रता आंदोलन सामान्‍य अशिक्षित लोगों तक पहंचा। 1906 में कलकत्‍ता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन जिसकी अध्‍यक्षता दादा भाई नौरोजी ने की थी, ने "स्‍वराज्‍य" प्राप्‍त करने का नारा दिया अर्थात् एक प्रकार का ऐसा स्‍वशासन जा ब्रिटिश नियंत्रण में चुने हुए व्‍यक्तियों द्वारा चलाया जाने वाला शासन हो, जैसा कनाडा व आस्‍ट्रेलिया में, जो ब्रिटिश साम्राज्‍य के अधीन थे, में प्रचलित था।

बीच, 1909 में ब्रिटिश सरकार ने, भारत सरकार के ढांचे में कुछ सुधार लाने की घोषणा की, जिसे मोरले-मिन्‍टो सुधारों के नाम से जाना जाता है। परन्‍तु इन सुधारों से निराशा ही प्राप्‍त हुई क्‍योंकि इसमें प्रतिनिधि सरकार की स्‍थापना की दिशा में बढ़ने का कोई प्रयास दिखाई नहीं दिया। मुसलमानों को विशेष प्रतिनिधित्‍व दिए जाने के प्रावधान को हिंदु-मुसलमान एकता जिस पर राष्‍ट्रीय आंदोलन टिका हुआ था, के लिए खतरे के रूप में देखा गया अत: मुसलमानों के नेता मोहम्‍मद अली जिन्‍ना समेत सभी नेताओं द्वारा इन सुधारों का ज़ोरदार विरोध किया गया। इसके बाद सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्‍ली में दो घोषणाएं की, प्रथम बंगाल विभाजन जो 1905 में किया गया था को निरस्‍त किया गया, द्वितीय, यह घोषणा की गई कि भारत की राजधानी कलकत्‍ता से हटाकर दिल्‍ली लाई जाएगी।

वर्ष 1909 में घोषित सुधारों से असंतुष्ट होकर स्वराज आन्दोलन के संघर्ष को और तेज कर दिया गया। जहां एक ओर बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चन्द्र पाल जैसे महान नेताओं ने ब्रिटिश राज के खिलाफ एक तरह से लगभग युद्ध ही शुरू कर दिया तो दूसरी ओर क्रांतिकारियों ने हिंसात्मक गतिविधियां शुरू कर दीं। पूरे देश में ही एक प्रकार की अस्थिरता की लहर चल पड़ी। लोगों के बीच पहले से ही असंतोष था, इसे और बढ़ाते हुए 1919 में रॉलेट एक्ट अधिनियम पारित किया गया, जिससे सरकार ट्रायल के बिना लोगों को जेल में रख सकती थी। इससे लोगों में स्वदेश की भावना फैली और बड़े-बड़े प्रदर्शन तथा धरने दिए जाने लगे, जिन्हें सरकार ने जलियांवाला बाग नर संहार जैसी अत्याचारी गतिविधियों से दमित करने का प्रयास किया, जहां हजारों बेगुनाह शांति प्रिय व्यक्तियों को जनरल डायर के आदेश पर गोलियों से भून दिया गया।

Formation of Indian National Congress (INC)

The foundations of the Indian National Movement were laid by Suredranath Banerjee with the formation of Indian Association at Calcutta in 1876. The aim of the Association was to represent the views of the educated middle class, inspire the Indian community to take the value of united action. The Indian Association was, in a way, the forerunner of the Indian National Congress, which was founded, with the help of A.O. Hume, a retired British official. The birth of Indian National Congress (INC) in 1885 marked the entry of new educated middle-class into politics and transformed the Indian political horizon. The first session of the Indian National Congress was held in Bombay in December 1885 under the president ship of Womesh Chandra Banerjee and was attended among others by and Badr-uddin-Tyabji.

At the turn of the century, the freedom movement reached out to the common unlettered man through the launching of the "Swadeshi Movement" by leaders such as Bal Gangadhar Tilak and Aurobindo Ghose. The Congress session at Calcutta in 1906, presided by Dadabhai Naoroji, gave a call for attainment of 'Swaraj' a type of self-government elected by the people within the British Dominion, as it prevailed in Canada and Australia, which were also the parts of the British Empire.

Meanwhile, in 1909, the British Government announced certain reforms in the structure of Government in India which are known as Morley-Minto Reforms. But these reforms came as a disappointment as they did not mark any advance towards the establishment of a representative Government. The provision of special representation of the Muslim was seen as a threat to the Hindu-Muslim unity on which the strength of the National Movement rested. So, these reforms were vehemently opposed by all the leaders, including the Muslim leader Muhammad Ali Jinnah. Subsequently, King George V made two announcements in Delhi: firstly, the partition of Bengal, which had been effected in 1905, was annulled and, secondly, it was announced that the capital of India was to be shifted from Calcutta to Delhi.

The disgust with the reforms announced in 1909 led to the intensification of the struggle for Swaraj. While, on one side, the activists led by the great leaders like Bal Gangadhar Tilak, Lala Lajpat Rai and Bipin Chandra Pal waged a virtual war against the British, on the other side, the revolutionaries stepped up their violent activities There was a widespread unrest in the country. To add to the already growing discontent among the people, Rowlatt Act was passed in 1919, which empowered the Government to put people in jail without trial. This caused widespread indignation, led to massive demonstration and hartals, which the Government repressed with brutal measures like the Jaliawalla Bagh massacre, where thousand of unarmed peaceful people were gunned down on the order of General Dyer.



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